सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
- १९ -

अन्त हो जाता है, और संयोगिता स्वयम्बर की आलोचना तो परम उच्चकोटि की तत्कालीन समय में हुई है।

नाटकों के प्रकरण में आपने सर्वप्रथम "वाराङ्गना रहस्य महानाटक अथवा वेश्या विनोद महाफाटक" आनन्द कादम्बिनी में प्रकाशित करना प्रारम्भ किया था, जिस पर उसके नायक राजीव लोचन के चरित्र को पढ़कर भारतेन्दु को कहना ही पड़ा “चौधरी साहेब देखिए अब राजीवलोचन की दुर्दशा का चित्र न खींचिए" मित्र की इस आज्ञा का वे उल्लंघन न कर सके और वहीं से नाटक अधूरा ही पड़ा रहा। आपका “भारत सौभाग्य” नाटक पूर्ण लिखित है, एकांकी के क्षेत्र में आपने "प्रयाग रामागमन" लिखा है। प्रहसन अनेक हैं, और चुटकुले भी बड़े सुन्दर हास्य के हैं।

आप परिष्कृत गद्य को लिखते थे, और लिखने को प्रोत्साहित करते थे। सानुप्रास, समासान्त, सतुकान्त लम्बे-लम्बे वाक्य-विन्यास हमें हिन्दी में प्रेमघन जी के ही मिलते हैं जिनके अन्तर्गत सामाजिक, राजनैतिक, विचारधारायें ओतप्रोत हैं। इसी के प्रचारार्थ आपने आनन्द कादम्बिनी' मासिक पत्रिका तथा नागरी 'नीरद' साप्ताहिक पत्र निकाला था। आपके सम्पादकीय अग्रलेख उस समय के सजीव इतिहास के रूप में हमें मिलते हैं। उपन्यास के क्षेत्र को भी आपने अछूता न छोड़ा। माधवी माधव तथा कान्ती कामिनी उपन्यास को आपने अन्तिम समय में प्रारम्भ किया पर वह भी प्रारम्भ ही होकर रह गया।

प्रेमघन सर्वस्व प्रथम भाग के इस द्वितीय संस्करण को हिन्दी जगत् के समक्ष आज प्रस्तुत करते हुए मुझे बड़ी प्रसन्नता हो रही है। इस बार मैंने यथाशक्ति प्रेमघन जी की समग्र कविताओं का इसमें समावेश कर दिया है। आशा है हिन्दी सेवी संसार को यह रुचिकर प्रतीत होगी।

दिनेश नारायण उपाध्याय

रक्षाबंधन

२६-८-६१
शीतलगंजग्रेन्ट, गोन्डा

उत्तर प्रदेश