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- १८२ - हरीचन्द सम चहकते, जित बुलबुल दिन रात। अन्य सुकवि कुल कोकिलन, की कल कूक सुनात। प्रेमी चारू चकोर नित, भूलि जात निज चन्द। निरखत चन्दहु चन्द छवि, छहरत, चन्द अमन्द ।। तपेविरह तापनि किते सीरी भरत उसास। उद्दीपन साजन सजे लखि अति कोप उदास ॥