जखम मन की मौज कुछ मत पूछो मन की मौज मौज सागरसी सो कैसे ठैराऊँ। जिस्का वारापार नही उस दर्या को दिखलाऊँ॥ तुमसे नाजुक दिलको भारी भौरो मे भरमाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। काली कलेजे ऊपर कैसे उसे दिखाऊँ। दर्द जिगर का मन्त्र हमारा सो किस तरह बताऊँ। बैद कोई ऐसा नहि जिस्से दिल की सैन बुझाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। ढूंढ जगत को पाया कैसे उसे तुरत प्रगटाऊँ। बिन परखैया चतुर जौहरी किसको इस दिखाऊँ। या अमोल मानिक बिन मोलहि मूढन सग गवाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। दोनो जग के कानो से गर किसी को खाली पाऊँ। तुरत जलज रज जुगल चरन की उसको सीस चढाऊँ। पर कोऊ मिलता नहि ऐसा जिसको गले लगाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। पडा जो याँ हम पर गुन उसको दिल मे चुप हो जाऊं। देखा जो कुछ इश्क चमन मे कैसे क्सेि दिखाऊँ। हानि लाभ की कुछ मत पूंछो कहने मे शरमाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ॥ यह अचरज अति चरित अनूपम कैसे सहज लखाऊँ। छेम मूल यह मन्त्र प्रेम को कैसे तुरत बताऊँ।
पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२२२
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