पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२२३

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कहन चहत जिय जोहि जगत गति फिर फिर मन समझाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। गो नादान, कुटिल, खल, मूरख, दुनिये में कहलाऊँ। काम न सुख, दुख, भले, बुरे निज निन्दा सुन न लजाऊँ। दिल में जो कुछ पकता उसको किस बिधि किस खिलाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। कोई गुरू न चेला मेला अजब लगा क्या गाऊँ।। कोई दिलवर यार नहीं गमखार किसै ठहराऊँ। खुद गरजे तो बहुत न सच्चा दिल का कोई पाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ॥ दूँ दिल जान माल बल्के सौ सौ सदके हो जाऊँ। जरा नहीं मुतवज्जह तिस पर हजरत को मैं पाऊँ। गैर मुफ्त में यार बने मैं बेगाना कहलाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। आप बड़े औ छोटा मैं फिर कैसे बिधी बताऊँ। मालिक तुम बन्दा वन्दा किस तरह भला बर आऊँ। आप न मानें एक बात मैं लाख तरह समझाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। कर दिल के सौ सौ टुकड़े मैं दर्पन सा दिखलाऊँ। परम प्रेम पीयूष सरिस कत कबिता रस बरसाऊँ। तौ भी बकरी सा पागुर करता जो तुमको पाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ॥ मैं अपने दुखड़े के पचड़े का करुणा रस लाऊँ। कहनी अन कहनी बातें कह भारी भरम गवाऊँ। चिलम सरिस मुख बाये हँसता तिस पर तुमको पाऊँ। कहो प्रेमघन प्रेम कहानी कैसे किसे सुनाऊँ। सौ उलझन में उलझों को कैसे कै सुलझाऊँ। बे दिल के बहलाव भला दिल कैसे कर बहलाऊँ।