सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०८- अब चैन परै नहिं वाके बिना, पढ़ि कौन सी मूठ चलाय गई। वह चन्दकला सी अचानक आय, सुहाय हिये मैं समाय गई। लखत लजात जलजात लोयननि जासु, होत दुति मंद मुख चंदहि निहारी है। रति मैं रतीहू राती जाकी ना विरंचि रची, सची मेनका मैं ऐसी सुन्दरी सुधारी है। नागरी सकल गुन आगरी सुजाकी छबि, लखि उरबसी उरबसी सोच भारी है। बेगि बरसाय रस प्रेम प्रेमघन आय, तो मैं बनवारी वारी बरसाने वारी है। मृगलोचनि मंजु मयंक मुखी, धनि जोबन रूप जखीरनी तू। मृदुहासिनी फाँसिनी मोहन को, कच मेचक जाल जंजीरनी तू॥ धनप्रेम पयोनिधि वासिहि बोरनि, नेह मैं नाभि जगनायक चेरो बनाय लियो, अरी वाह री वाह अहीरनी तू॥ गंभीरनी तू। नख सिख चित दृग मीन मलीन कियो, मद हीन भये गज चाल मराल। दबी द्युति दन्तन दामिनि ठोढ़ी, लखे पियरे भरे डाल रसाल।