पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२४५

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२१४ दुन्दुभी पर दोय धरी उलटी, चकई चकवा की मिसाल दिया है। त्यों धन प्रेम कहैं घट हेम कोऊ, झूठी सबै बतिया है। काम के बान की ढाल बनी, छतिया पै दोऊ कुच ये फुलिया है। यद्यपि छार कियो ही हुतो, छिन मैं करि कोप जबै जिहि रूठे। पै तिहि ज्याय खिस्याय भयो, शरणागत ब्याहि विवाह अनूठे। ये घन प्रेम न चूचुक हैं, कुच के अरु नाहि कहैं हम झूठे। शम्भु के सीस पै जाय रह्यो है, दोऊ कर काम दिखाय अँगूठे॥ केश उमंग सों संग अलीन अन्हाय, कढ़ी तजि गंग तरंगन बाल। लसें जल भीज दुकूल अनंग से, अंगन की छबि छाय कमाल। पयोधर पीन पैं यों लटकी घन प्रेम घिरी घन सी लट जाल। लखो लहि प्यार अपार महेसहिं चूमि रहे जनु व्याल विसाल॥ चढ़ी भौंह कमान समान लसैं, उभै लोजन बान करालन सों।