पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२५५

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२२४ साचहूँ उमंग है अनंग पान भंग, मन मोहन मलार ललकार वर्षा की है। प्रेमघन नाचत मयूरन को माल, चमू चारु चातकन की पुकार वर्षा की है। प्यार वर्षा की क्या खुमार वर्षा की, घेरघार वर्षा की क्या बहार वर्षा की है। नैनन सों जबही ते दुरे, बिरहानल ते नित तावन वारे। साचहुँ मानत है घन प्रेम, लखे मन तौ छल छन्द तिहारे॥ आस नहीं मिलिबे की दुखी अब, प्रान बचै इमि कैसे पियारे। मोम के मन्दिर माखन को मुनि बैठो हुतासन आसन मारे॥ ग्यारहें अम्बर पै लहरै बढ़ो सिन्धु कुहू निस में दुति धारे। कागद की एक भारी जहाज पै, राजत मेरु कई कजरारे। देखत हैं घनप्रेम भरे तहां बाँझ के पूत बिना दृगवारे। मोम के मंदिर माखन को मुनि, बैठो हुतासन आसन मारे॥ खूब समस्या दई तुमने, कब के रहे बैर छली हिय धारे। हारे सदाई अहैं तुमसे, तुम्है लाभ कहा पै कबीन के हारे॥ ज्यों तुमरी बतियान को नाहीं, पत्यानि परै सुनि तैसे बिचारे। मोम के मंदिर माखन को मुनि, बैठो हुतासन आसन मारे॥ मित्र कियो अनुरोध हमैं इक, त्यों कसमें हमहूँ अब खाली। हेतु यही जिय में निरधारि, सवैया कई तुरतें रचि डाली। यद्यपि है घन प्रेम प्रयास, समस्या निरी यह नीरस वाली। पूरी करें पै तऊ अब तो, केहि कारन कौन बनाय है जाली॥ न्हाय के हाय सुहाय दुकूल, सुखावत है अलकावलि आली। नीरचुऔबरसावत ज्यों, सुधा लैं ससि सों सिव ऊपर व्याली॥