पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२८८

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२५८ - ॥ ज्वालादीन मलीन मति बिन्दादीन प्रवीन । आय अलीगढ़ में भये पूरी खाय बे दीन॥ भरा क्रोध मः का वृथा आय गर्जः सुसा' शास्त्रि वर्यः सुसा शास्त्रि वर्यः सूस तुम पंडित होहुगे. हो, बड़े खर खंडित होगे हो। पगाले' बंगाले रहत हैं साले दिहल के, मनोहारिन बारिन जुगल भमनी जिनकी युवा। तिन्हें तो ब्याहा है अनत ले जाकर के कहूँ, बची जो थी बृद्धा दिहल' के माथे मढ़ दियो तुम जगलाल', तुम ठग लाल, तुम भगा लाल का भाई होस् । टटू जी महराज। कि तुम बदमाशों के सिरताज ॥ तमाचे खाओगे तुम आज। करोगे फिर जो ऐसा काज॥ बिल्ली, की बहिन भिल्ली रहती है सहर दिल्ली। श्री बाबू बेणी प्रसाद । यद्यपि नहिं जानत कवित स्वाद ॥ श्री बदरीनाथ प्रसाद। और नहीं तो बाद बिवाद । हां हरिचन्द' कितै गए दुःख बड़ा है होत, दोऊ बनियां रोवत है बैठे जइस कपोत । नैहर में ससुरारि नारि करि, सोढर सोवै सूनी सेज। जब चमकै बिजुरी घन गरजै, थाम्हें कहेरि करेज ।। सुनो जी 1 १. सवेश्वर प्रसाद प्रेमघन जी के भतीजे हैं। २. नौकर थे। ३. जगदीश्वर। ४. गंगेश्वर प्रसाद की लड़की सावित्री ५. भारतेन्दु।