पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२८७

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२५७ भज उठि सुबह शाम।। श्रीराम लो श्रीराम राम। विश्वेश्वरार्चन करो श्रीमन् महेन्द्र को करो झुकि कै प्रणाम। शिवदत्त निर्मल करो तब और काम॥ माया की उलझन लगी संता पड़ा बेहाल। सटा छटा पंडित कै कतहूँ काट न लीन्यो गाल॥ कवित्त भगवती प्रसाद के प्रमाद को ठिकानो नाहि, बूढो गौरीशंकर भयंकर कहायो है। माताभीख लाल की गोटी सदा लाल रहे, लाल को विहारी है अनारी पछतायो है। माताबदल पांड़े अदल को बदल करें, राजाराम कृपा करि सब को सुरझायो है। जेते हैं मुसाहेब समझदार, लाल घिसिआवन सबही को घिसिआयो है। शिवबर्द लाल महिमा विशाल। मेटी यस जेकर तालन में भूपाल ताल है, और ताल तलैया बर्दन में शिवबर्द लाल हैं और बरद सब गैया॥ बाछाजू के गाल॥ १. ये दो भृत्य थे। २. ये प्रेमघन जी के एक कारिन्दा थे। ३. ये प्रेमघन जी के वंश के हैं और प्रेमघन जी के म्यानेजर थे। ४. इस कवित्त में प्रेमघन जी ने अपने भाइयों से विभाग के समय विभाग करने वाले कार्यकर्ताओं का नाम तथा उनको पटुता का वर्णन है। ५. ये प्रेमघन जी के रसोइया थे।