२६० श्री वदरी नारायन गायो, यह अविवेक रूप संग छापो, विधि छल छल की चाल चलाये वामन की बामन की। 3 खिमट मुकुन्दी के छोकड़ी लूटै बजार। लूटि बनारस चिक्न के के अब मिरजापुर के है विचार । मुरली धर सतनारायन सिंघ दुबरी दररि मिलायो छार। बाल मुकुन्द पदारथ दूबे बेनी गनेस को दीनो उजार। अब महन्त पर हाथ लग्योल होत नहि गिनती कवनहु यार। रेखता रवीदत्त' बामन बौराना, कूआं पर से साधै निसाना। मधवा देखि देखि गुर्राना, बेनिया ससुरा है सरमाना । ठुमरी भरथ दास दिलदार यार भी हैं दीन्हेंन धोखा बार बार। औरन सो तुस सटत रोज हम कासी नाथ पर नहीं प्यार खिमटा मकरिया कैसा जाल बनावै । बिलनी को किलनी जब लगी, झीगुर खड़ा भटकावै । खिमटा-गौरी राग खलीला जी छोड़ दो तिरक्कुनी मोरी। नहिं हम माधो साहु न पन्ना ना हम भारथ दास। १. बामनाचार्य के ऊपर लिखित यह कविता व्यक्तिगत जीवन के साथियों के चरित्र पर प्रकाश डालती है। २. महंथ जयराम गिरि मिरजापूर के रईस प्रेमघन जी के मित्र थे। ३. घौरका निवासी प्रेमघन जी के पट्टीदार थे।
पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२९०
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