२६१ रामदास न दुरगा हम बस जाओ न आओ पास। बकरी सी दाढी औ सूरत तापें रहे इठलाय । हमसे सीधे से रहिए नहिं जै हौ तमाचे खाय॥ खिमटा पासे अखाड़ा बनाव मोरे राजा। तुम लड़ो हम देखी तमासा॥ पास अखाड़ा तब सजै जब घूमौ मिट्टी लगाय मोरे राजा। पीली मिट्टी सजै तिरक्कुन्नी लाल जो कमर सोहाय मोरे राजा।। लाल तिक्कुनी तब सजै जब आधा धड़ दिखाय मोरे राजा। सजै सचिक्कन धड़ तब जब लखि लखि मन ललचाय मोरे राजा। मन ललचान सजै तबही जब लड़ियो आँखें लड़ाय मोरे राजा ।। भैरव राग " कहां गई घर वाली तेरी, कहां गई घर वाली, मेरे सुख की देने वाली। जब लगि रही निरादर कीनो नित उठि दीन्यो गाली। निकल गई वह फतहूपुर तुम रोवो जइस डफाली। डोलत भरतदास के पीछे लीन्हे सूरत काली। तेल हाथ लै घूमत खोजत कहूँ. अखाड़ा खाली॥ कजली गलियाँ की गलियाँ रतियाँ घूमै देउआ बनियाँ रामा। हरि हरि चम्बू बम्बू पीए बा बौराना रेहरी। मम्मी खां का ख्याल गावत चिल्लाता है बहुतै रामा। हरि हरि भेजो जल्दी उसको पागलखाना रेहरी॥
पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२९१
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