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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२९४

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२६४ - लाग। दास अनन्त मथुरानाथ ब्रह्मचारी अहै बड़ो ज्ञान धारी। हरी हंस अति प्रसंस, केस मित्र जाके। कब से खड़ी हुई जमुना के बाग, लोचन से लोचन है कवित्त भनन्त। छनन्त कै बूटी लड़न्त मचावै ।। पुरोहित पत्र (जो श्री जगन्नाथ धाम मे लिखा था) मिरज़ापुर गिरजा निकट, सुरसरि सरिता तीर। तहँ कटरा बृजराज मैं इक आनन्द कुटीर । सुचि सरजूपारीण कुल उपाध्याय द्विजराज। श्री शीतल परसाद चौधरी सहित सकल सुख साज।। निवसत संमानित तनय तासु गुरुचरण लाल। मूर्ति धर्म रिषि कल्प जस फैल्यो जासु विशाल बदरीनारायन तनय तासु प्रेमघन लिख्यो पुरोहित पत्र यह देय समय पर काम ।। आयो दर्शन काज हित जगन्नाथ के धाम। श्री चैतन्य पुजारि को मान्यो पंडा अत्र ।। तिहि प्रमाण के हेतु यह लिख्यो पुरोहित पत्र। 11 नाम।