२६३ कजली का कहर नजर के माला जेवर ओठ लाल गुलाल रामा। हरी बाचउ काला बाबा बरतर बाला रे हरी । टेक। गोरा चिट्टा चेहरा पर बालमक जाँद से आला। हरी बाल नाग सा काला धुंधर वाला रे हरि । जहरीला जिउमार दिये बहु जालिम तिरछी टोपी राम । बना फिरहु आफत परकाला रे हरी। कठिन कठिन उज्जड़ करि गैलेन केतने जेकरे कारन रामा। लदि गैलैन कितने. डामल के सजा को रे हरी। चिरंजीवी वासुदेव के प्रथमपुत्र जन्मोत्सव दिन लिखित-सोहर हे सब सखियां सहेली रे बेगि चलि आवहु रे। (मोरी सखियां) मोरे घरे आनन्द बधैयारे सबै मिलि गावहु रे॥टेक॥ आजु भए विधि दिहिन होरिला जनम भये रे। भरि भरि कोछवां ले आओ, मोहरिया लुटावहु रे। सब मिलि सैयां के लिआवोरे, बेगि धरि ल्यावहु रे। जाचक करहिं निहाल, कसकिया मिटावहु रे। वेगि बोलाओ ना ढाडीनियां रे, नचाओ ना अगनवां रे। वेगि वधया के वाजनवां रे, दुवरवां बजावहु रें। गौरी गनेस के मनाओ वलकवा मोर जी अहिरे। सब मिल देहु असीस आनन्द बढ़ावहु रे॥ घरऊ दिल्लगी मथुरा, वासुदेवश्च, यदुनाथो हरिस्तथा, एकैकनाय, किमु यत्र चतुष्टयम्।
पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/२९३
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