पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/३०६

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२७७ भारत तरु अपनाय कै दियो सौंपि तेरे कर। "ईस्ट इण्डिया कम्पनी" चातुर मालिनी सुधर॥ निज घर गई पराय त्यागि निज सकल मनोरथ। तेरो प्रबल प्रताप दिखायो तिहि सूधो पथ। "बृटिश इण्डिया” नाम कियो चरितारथ साँचहु। भारत राज अखण्ड लियो, नहिँ राख्यो अरि कहुँ । मरे डेढ़ दरजन जिहि ललचि बृटेन अनुशासक। पै नहिँ भारत राज भये कोउ सुयस प्रकासक। ताकी नहि रानी महारानीही तुम केवल। भई राज-राजेसुरी यतन बिना भाग्य बल॥ धन्य ईसवी सन् अट्ठारह सौ सतहत्तर। प्रथम जनवरी दिवस नवल दिन जो प्रसिद्ध वर॥ कियो नयो दिन जो भारत को बहुत दिनन पर। दियो स्वतन्त्र देस को नाम फेरि याको कर॥ भई राज-राजेसुरी आप हमारी। गई सुतन्त्र नाम सों हम सब प्रजा पुकारी॥ यह नहिं न्यून हमारे हित, गुनि हिय हरषानी। लगी असीसन तोहि जोरि ईसहिँ युग पानी। जिन असीस परभाय जसन जुबिली दिन आयो। पुनि इन भक्त प्रजन को मन औरो हरषायो। देनि लगी आसीस फेरि यै होय मुदित मन। यथा एक बदरी नारायन सुकवि "प्रेमघन"। ईस कृपा सों और एक जुबली तुव आवै फेरि भारती प्रजा ऐस ही मोद मनावै॥ धन्य धन्य यह दिवस जु पूजी · आस हमारी। भई दूसरी हीरक जुबिली - आज तिहारी॥ अब पचास बत्सर हू सुख सों ईस बितेहैं। जाके अन्तर अवसि कई जुबिली फिरि अइहैं। अलग