पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/३०५

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२७६ नाम “ईस्ट इण्डिया कम्पनी" धरि हरषाई। निज व्यापारी प्रजन जोरि मन्डली बनाई। पठयो तिहि व्यापार करन के हित भारत महँ इतने ही मैं धन्य मानि उन लियो आप कहँ॥ जिहि व्यापार लाभ लतिका को बीज सुअवसर। बोयो बिबिध उपाय “एलिज़ाबेथ" अपने कर॥ "प्रथम जेम्स” जिहि यतन अनेकन करि लखि पायो। होत बीज अंकुरित दूत निज सो हरषायो॥ प्रथमचार्ल्स' मन मुदित होत जिहिलख्यो पल्लवित। प्रजा तन्त्र में युगल "क्रामबेल' निरख्यो बधित ॥ नृपति “चार्ल्स दूसरो" पुष्ट जाकहँ अनुमान्यो। पाय दहेज बम्बई दीप हिये हरषान्यो। यदपि दच्छिना पै सासन आरम्भ मानि मन। गुन्यो अलभ्य लाभ सत मुद्रा साल स्वल्प धन॥ जाहि 'दूसरो जेम्स' नृपति 'बिलियम' अरु 'मेरी'। तैसहि रानी “एन" मरी भारत दिसि हेरी। "प्रथम जार्ज" राजहु नहिँ लाभ और कछु पायो। सोई व्यापार लता फैलत लखि जनम गँवायो।। जाहि “जार्ज दूसरों" नृपति बहु दिवस निहारत। लख्यो हरषि हिय लपटत लपक़ि बिटप बर भारत॥ “जार्ज तीसरो' निरख्यो जिहि फैलत सब साखंन। भारत तरुवर पर प्रयास बिनहीं छनहीं छन । "चौथो जार्ज' जाहि मान्यों हर्षित भारत पर। फैलि गई दृढ़ रूप नहीं अब सूखन को डर। महाराज "विलियम चतुर्थ” निज भागं सराहत। जिहि लतिका मैं लख्यो कलित कलिकावलि लागत ॥ पै सो राजत राज तिहारे ही साँची बिधि। फैली पूरन रूप होय प्रफुलित फलि फल निधि।