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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/३६३

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भारत बधाई सम्राट श्री सप्तम एडवर्ड के भारत साम्राज्याभिषेक के शुभ अवसर पर दोहा ईस दया सों बहु बरिस, जियहु सहित सुख साजि हे सप्तम एडवर्ड तुम नव महराज धिराज॥ हरिगीत छन्द मंगल दिवस वह धन्य अति सुभ जब दया दृग फेरिक। जगदीश करुना सिन्धु भारत दसा आरत हेरिकै । अन्याय मय दुस्सह दुखद अति निंद्य राज निवेरिक। सुभ सुखद सासन पार सात समुद्र हूं तें टेरिकै॥ आन्यो एत व्यापार के मिसि बनिक बनक बनाइक। अंगरेज मनुजन को सहजहीं लाभ लोभ लगाइकै ॥ करि शक्ति साहस वृद्धि सासन आस उर उपजाइक। अन्धेर दृश्य दिखाय बिनहिं प्रयास बिजय कराइकै ॥ धनि दिवस वह पुनि अवसि चमकी भाग भारत भाल की। बिनसन कुराज सिराज सठ संगहि कुनीति कुचाल की। बिहँसी पलासी भूमि सीमा निरखिन कष्ट कराल की। जब बीरबर क्लाइव लही बाँकी बिजय बंगाल की। दोहा ईस्ट इण्डिया कम्पनी को सुखदायक राज। धन्य जाहि लहि देस यह खोयो दुख के साज ॥