पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/३७२

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जुरी लच्छ सेनासिधारा चमकैं।
भुजों बीजुरी बाजवा के दमकै॥
सबै सूर सामन्त धारे उमंगैं।
कलापीन के से नचावैं तुरंगैं॥
सजे जान हैं बे प्रमान आज आये।
मनौ मेदिनी स्यामही सस्य छाये॥
छुटै तोप की बाढ़ कै सोर भारी।
गरज्जैं मनौ मेघ आकास चारी॥
उड़ी धूरि धूआँ मिली ब्योम जाई।
दिनै पावसी जामनी सी बनाई॥
अलंकार भूपाल के रत्न राजी।
चमंकै लखें जोगिनी जोति लाजी॥
बढ़ै बन्दि बानी विरदै उचारै।
सुजीमूत को ज्यों पपीहे पुकारैं॥
कई लच्छ की भीर भारी भई है।
धरा धन्य या भार को जो लही है॥

दोहा


लगी चाँदनी चौक मै ह्वै लाहौरी द्वार।
लौटी जबै बरात यह जाको वार न पार॥
करि स्वागत सत्कार बहु जासु लाट पंजाब।
जनवासो मैदान में दीनों सजित सिताब।

हरिगीती


सोभा निरखि कै बात कछु कहि जात नहिं अचरजमयी।
पुहुमी पचीसन मील की जनु बनि गई नगरी मयी॥
तम्बू तने अनगिनित स्रेनी बद्ध भागन मैं कई।
सब देस देस नरेस, सासक, निवसि जित सोभा दई॥