पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/३७३

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भुजङ्गप्रयात


सिंची चारु बीथी नई ही नई हैं।
बनी फूलवारी कहीं पर कहीं हैं॥
खिले फूल हैं ढेर के ढेर सोहैं।
भ्रमैं भौंर भूले जहाँ चित्त मोहैं॥
कहूँ पैं हरी दूब हैं खूब सोही।
कहूँ कुंज छाजे मनैं लेत मोही॥
कहूँ कुण्ड के बीच छूटैं फुहारे।
बने धाम केते प्रभा धौल धारे।

नाराच


ठौर क्रीडनादि के बने अनेक हैं कहूँ।
विश्व वस्तु सों भरी लगी सुहाट हैं कहूँ॥
नीर बाहिनी नले सुठौर हैं बनी।
दीप दामिनी प्रभा सुआस पास हैं घनी॥
तार डाक औषधालयादि हैं बने कहूँ।
भाँति भाँति के अराम साज बाज हैं कहूँ॥
रेल ठौर ठौर दौरती छटा दिखावती।
जाति एक, दूसरी तहीं तुरन्त आवती॥
है प्रदर्शनी जहाँ खुली धरित्रिसार लौं।
लाख बस्तु हैं तहाँ पीरजु देखि ना कभौं॥
जासु साज बाज को बखान कौन कै सकै।
विश्व मोहनी प्रभा निहारि हारि ही रहै।
लाखनै ध्वजा पताक वृन्द फहरात हैं।
लाखनै प्रकार कौतुकौ जहाँ लखात हैं॥
बाजने विचित्र भाँति भाँति के बजै तहाँ।
किन्नरौ लजात साज संग के सुने जहाँ॥