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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४२८

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कथन किसी का है, हरि भक्त चन्द के हिय में बसते हैं।
आभा श्याम उन्हीं की है वह, प्रेम जाल में चितते हैं॥
मैं तो कहता हूँ तारा का विरह न सोम संभाल सका।
हआ उसे क्षय रोग कलेजा, झांझर हुआ हताशय का॥
गगन श्यामता पीछे की, जिससे पड़ती दिखलाई है।
ईश कान्ता पति की मानो, प्रगट प्रेम प्रभुताई है॥
अथवा जैसे चन्द्र मौलि के भाल चन्द्र जो बसता है।
अभी लोभ अहि श्याम समूह, सुहाता उसमें बसता है।