पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४३४

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संगीत काव्य
शृंगार बिन्दु
भैरव

जय जय जय जयति जगत जोति जनन हारे॥टेक॥
नारद, शारद, महेश, सेस वेद औ गनेश
थाके गुन गान ध्यान मौन मारि धारे।
सच्चित आनन्द रूप माया तुव अति अनूप
किंकर सुर भूप तीन देव चन्द तारे॥
निरमल नित निराकार व्यापक जग निराधार,
सूच्छम आकार पार वार तयो भारे।
बदरी नारायण जू निराकार निरगुन तू—
सर्व शक्ति सहित इष्ट देवता हमारे॥१॥

नेक देहु इतै चितै यार प्रान प्यारे॥टेक॥
मोहत मुरली बजाय मन्द मधुर मुसकुराय,
आय धाय लागो गर नन्द के दुलारे।
बद्री नारायन सन न्यारे जनि होवहु छन
मन मै बसिअै सु आय मोर मुकुट वारे॥२॥

नैन मैन बान जान कान लौं निहारे,
भौंह की कमान तान२ प्रान मारे॥टेक॥
चचल चहु ओर कोर, ताकत टुक जासु ओर,
बरबस बेबस बनावते ये मतवारे॥३॥

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