पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
—४१९—

गजब कियो गोरिया तोरे जुबनां रे॥टेक॥
लगत मरन नहिं को अस जग महँ विष बेधे सैना रे॥
बद्रीनाथ हाथ जोरत हूँ, काजर दै अब ना रे॥५४॥

 

चाल आँख लड़ाने की नहीं यार भली है,
लाखों से इन्हीं बातों में तलवार चली है॥टेक॥
बद्रीनारायन जानी कैसी ठान है ठानी,
हम खूब पहचानी कि तू ऐ यार छली है॥५५॥

 

(इमन)


बानि नहीं यह नीकी अली री॥टेक॥
नेक उझकि झाकत न झरोखे लोचन लाभ न लेत अली री॥
बिन मधुकर शोभा नहिं पावत जुगल उरोज सरोज कली री॥
चलि वृजराज आज मिलिये कस कोकिल कूजित कुञ्ज गली री॥
बद्रीनाथ हाथ मलि मलि नहिं पछतैहों मन मांहि भली री॥५६॥

 

मानति काहे न ए मृगलोचनि॥टेक॥
मुख मयंक करि मन्द, मानिनी, लेति सीरी उसास मसूसनि॥
ताकत कनखैयन अनखैयन, भौहें कुटिल कमान रहीं तनि॥
बोलत बैन बुझाये बिष जनु, मारत घाव हिये मैं सो हनि॥
श्रीबद्रीनारायन जू धनि मान गुमान गरूर तेरी धनि॥५७॥

राग भैरव ता॰ एकताला। ईश बन्दना
जय जय जगदीस जयति जगत जनन हारे॥
नारद सारद महेस,
सेस वेद औ गनेस,
थाके गुन गाय ध्यान धारि मौन मारे॥