- ४१८ आओ आओ जावो कहि जानी सतराय हो।।टेक।। न गुमान सान सौकत सों काहे फिरत कतराये हो॥ श्री बद्रीनारायन उत कित, चलेई जात बिना बोले बतराये हो॥५०॥ जाय कौन पानी (वा वारी) हाय ठाढ़ो बनवारी रे, लीने कर मुरली मोर मुकुट धारी रे॥टेक।। श्रीबद्रीनारायन नटवर मन्द मन्द मुसुकाय मोह कर, आय आय लग जाय धाय गर, हा हा खाय बिलखाय परि पाय लाख लाख बरजोरी लंगर, बिच डगर करत न बचत कोई नारी॥५१॥ मेरे मन माहीं मन मोहन मुरारी रे, बस गयो बरबस मूढ़ भारी ॥टेक॥ दीसत सब सुध बुध बिसराई बीर, मोहनी मूरत सोहनी सूरत कारी रे॥ चोरि चित लियो चपल चखनि, चितवत सोइ चितचोर चितचोर ब्रजनारी॥ कैसी करूँ आली पल परत न कल मन विकल विलोकन बिना रहत भारी॥ वाही बद्रीनारायण ल्याय जो मिला दे या दिखा दे या बता दे, जाऊँ तू वारी प्यारी॥५२॥ कभू फिर इन गलियन मैं आओ, चन्द अमन्द सरिस सूरत इन नैन चकोर दिखाओ॥टेक।। सखा संग सब साज सजे सुठि, साँचहु सुख सरसाओ ! बिरहानल ब्याकुल वहि आनन्द वारि बुन्द बरसाओ॥ बद्रीनाथ देखिबे हूँ मैं, अब जनि यार सताओ॥ या मनमोहन वारी मुरली को इक टेर सुनाओ॥५३॥
पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४४४
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