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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४५०

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खम्माच
खम्माच की ठुमरी


कजली खेलत आली, झुलनी गिरी मजेदार॥टेक॥
बिन झुलनी नीकी नहिं लागै रे, यह सावन की बहार।
बद्रीनाथ चोरायो छल करि बाँको मोहन यार॥
चुम्बन समय दुरावत ओढ़नि तासों प्रीत अपार॥६५॥

बिन देखे निज यार चित में परे नहीं चैन॥टेक॥
रहत सदा चित चढ़ी अमल छबि, जेहि लखि लाजत नैन॥
वह मुसुकानि हंसनि बन बोलनि, मीठे मीठे बैन।
बदरीनारायन कोई की यों आँखैं उरझै न॥

तू कर धर काहे रहत कँधाई रे॥टेक॥
बद्रीनारायन सीधे साधेघर चले जाओ नहिं नीकी बहुत ढिठाई रे॥६६॥

खम्माच


(हो) दिलजानी लगूं तोरी पैयां, तुम ही अनोखे बिदेस चले,
मोरी बारी बयस लरकैयां॥टेक॥
बार बार बिनती कर हारी, सुनत नहीं टुक अरज हमारी;
बद्रीनारायण सैयां॥६७॥

कब लौं योंही तरसैयो हो—इत आय धाय कबहूँ तो हाय,
निज छबि दिखाय हरखैयो होटेक॥
बद्रीनारायण दिल जानी, मन ते जनि हो अब न्यारे प्यारे,
प्यासे मन मोर अथोर भये तुम सरस सुधा बरसैयो हो॥६८॥

कान्हरा


इहि औसर मात न कीजै—ए री मेरी वीर सयानी,
कौन तिहारी बान परी...॥टेक॥