पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४४९

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रोग सोगहारी बर बिपति बिदारी,
सुभ सुखकारी।
सदय होय सो बेगि प्रेमघन
चिन्ता हरहिं तुमारी॥६१॥

राग इमन ताल ३


हूजै नयननि सों जनि न्यारे॥
प्रिय बृजराज दुलारे॥टेक॥
मन मोहनी माधुरी मूरत, सुन्दर सरस सांवरी सूरत,
मुसुकुराय चंचल चख घूरत, मोर मुकुट सिर धारे॥
उर वनमाल रसाल बिराजत, कटि तट पीताम्बर छबि छाजत,
निरखत जाहि मदन सत लाजत, जुवति जनन मन हारे॥
श्री कालिन्दी के कूलनि मैं, कलित कुंज श्री बृन्दाबन में,
रानी कमला अरु मुनि मन मैं, नितही बिहरन हारे॥
बदरीनारायन गिरवर धर, सुख सँयोग सरससाय निरन्तर,
मिलिये छलबल छाड़ि दयाकर, प्रानन हूँ सन प्यारे॥६२॥

प्यारे टरहु न मन सन टारे। भूलत नाहि बिसारे॥टेक॥
मन्द मन्द मृदु हसन तिहारी, मूरति मनहुँ मयन मन हारी,
लोचन चपल चितौन कटारी, कसकत हीय हमारे॥
श्री बदरीनारायन दिलवर, जादू डाल दियो तुम हम पर,
मिलत न तरसावत छलबल कर, रूप गरब हठ धारे॥६३॥

भूलत सूरत नाहिं तिहारी॥टेक॥
मुसुकुराय मन मोह्यो, मारी नैन कटारी कारी॥
सुध आए सब सुध बिसरत छबि मन ते टरत न टारी॥
निकसत प्रान बिना तेरे अब, आय धाय मिल जारी॥
श्री बदरीनारायन लागी कैसी लगन हमारी॥६४॥

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