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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४५२

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दिना चार है यार जोशे जवानी, इसीसे खुशी में इसे है बितानी॥टेक॥


यह बिचार संसार सार सुख भोगो मिल दिलजानी।
मान गुमान त्याग कर तू हँस बोल खेल सैलानी॥
करना होय सो कर लेबो बस, बेग न बिलम लगानी।
श्री बद्रीनारायन जू यह बीते फेर न आनी॥७५॥

इन नैनन घनश्याम लजाओ॥टेक॥


नित बासर बरसत हिय सरवर आंसुन जलहि भरायो।
इत बियोग सरिता बढि धीरज नवल तमाल नसायो॥
बद्रीनाथ हाय नहि सूझत, बिरह तिमिर नभ छायो।
उन बिन पावस बनि अनंग अलि, सूल समीर चलायो॥७६॥

देस का खेमटा


कटारी नैना लगि गयो ए मोरी गुयां॥टेक॥


जब से लगी तन की सुधि नाहीं, लाज डर भागि गई (ए मोरी गुयाँ)
बद्रीनाथ बिरह की तब सों आग उर लाग गई—ए मोरी गुयां॥७७॥

अरे अलबेले बनवारी॥टेक॥


निस दिन नहिँ भूलत सुध मन तैं सपनहुँ तनक तिहारी।
नैननि आगे रहत अरी साँवरी सुरत वह प्यारी॥
जी मैं नाचत लखियत मन हारी अँखियाँ रतनारी।
गूंजत कानन मैं मुरली धुनि मधुर सप्त सुरन संचारी॥७८॥

सोरठ


नैन लगे दुख दैन लगे॥टेक॥


लखतहिं रूप अनूप अचानक, तजि निज साथ भगे॥
जाय उतै आवत नहिं अब इत, निज प्रिय रंग रँगे।
बद्रीनाथ हाँथ परि औरन के ये गये ठगे॥७९॥