पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४६२

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गुँजन छबि पुञ्जन मोती नथुनी के करत अयान।
मिसी पान से सोहत अधर मधुर की मुरि मुसुक्यान॥
अलगी अलग रहत नाहीं हौ लखी लाख बिरिपान।
बोअत क्यों विष बृक्ष बीज फल लखियारी है पछतान॥
खिरकी पै हिरकी रहती हौ ऐ उत चढ़ी अटान।
पनघट पै प्रेमी न जान के नूतन मारत प्रान॥
भई अनोखी तुही सुन्दरी जोबन जोर जवान।
अरी रूप गर्वीली सुन मन तैं तजि मान गुमान॥
कोउ संग सैन वैन कोऊ संग हंस कोउ संग सतरान।
दै छाटा गुर्री धत्ता कहु धांई दै कतरान॥
काहू सिसकारी सुनाय काहू लखाय अँगिरान।
काहू उर उभार मारत कोउ मोहत लंक लचान॥
प्यारी है बारी तू अब ही कुसुम कलीन समान।
बन मत मतवारी मैं वारी मदन मद्य कर पान॥
बड़े बाप की है बेटी तज तू न अरी कुलकान।
कुलवारी नारी सम रहि गहि लाज संक सकुचान॥
गुरुजन को डर डारि नारि तू औढर ढरत ढरान।
ठानत मन पथ अपथ अरी घूमत इत उत इतरान॥
लग जैहै नैना काहू सों तब परिहै तोहि जान।
नहिँ सुरझत कैसहु आली उर अन्तर की उरझान॥
झूठी कथा सखी सच ह्वैहैं सुन लैहैं सतकान।
ह्वै जैहै बेकाम अरी बदनाम बाम नादान॥
कठिन संयोग जानि जिय पै प्रगटत मिलान अरमान।
श्री बद्रीनारायन जू को करत हाय हैरान॥१०७॥

करत नखरे नित नये नये अरे ए दिलवर प्यारे-आरे
मत तरसा मुझको॥टेक॥
श्री बद्रीनारायन दिलवर दिखला जा टुक मुख हमको॥