पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४९०

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नये फूल की मुझको हाजत नहीं है,
यहां रंग अपनो जमाए हुए हैं।
यही हजरते दिल के हैं लेनेवाले,
जो भोली सी सूरत बनाए हुए हैं।
नहीं दाग मिस्सी का लाले लबों पर,
ये याकूत में नीलम जड़ाए हुए हैं।
डरूंगा न मैं घूरने से सितमगर,
हसीनों से आखें लड़ाए हुए हैं।
अजल भी नहीं आती है खौफ़े से यां,
जो वो दान उलफत लगाये हुए हैं।
जिगर पर है कारी ज़खम मुश्फ़िके मन,
निगह तीर वो जो चढ़ाये हुए हैं।
धरे दामे गेसू में दाना ए तिल का,
बहुत तायरे दिल फँसाए हुए हैं।
सताओ भली तर्ह बदरीनारायन,
बहुत तुम से आराम पाए हुए हैं॥४॥

दिल को तो लूट लिया करते हैं,
मुझको बेचैन किया करते हैं।
क्या तरीका यह निकाला है नया,
जान दे दे के लिया करते हैं।

शाम से सुबह शवो रोज़ मुदाम,
दम ही धागें में रहा करते हैं।
हम भी उम्मीद में तसकीं करके,
जिन्दगी अपनी फना करते हैं।

खा के गम पीके जिगर के खूँ को
..........ख्वाब कहा करते हैं।