पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४९७

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तेरी ख़ाके पा से रहे मुझको उलफ़त,
यही दिल की हसरत यही आरजू है।

सिफ़त का तेरी किस तरह से बयां हो,
कब इस्में किसै ताक़ते गुफ्तगू है॥
तुझे भूल कर ग़ैर को जिसने चाहा,
उसी की मिली ख़ाक में आबरू है॥

जहाँ की हवा वा हवस में जो घूमा,
उड़ाता फिरा ख़ाक वह कू ब कू है।
ज़मीनो फ़लक काह से कोह में भी,
जो देखा तो हर जाय मौजूद तू है॥

जिधर गौर करता हूँ होता हूँ हैरां,
अजब तेरी सनअत अयां चार सू है॥
कहां रुतबये यूसुफ़ो हूरो ग़िलमां,
शहनशाह ख़ूबां फ़कत एक तू है।

गिलो आब से आब गुल कब ये पाते,
ये तेरी ही रंगत ये तेरी ही बू है।
महो मेहर अनवर सितारों में प्यारी,
तुम्हारी ही जल्वागिरी चार सू हैं।

तुही जल्वागर दैर दिल में है सब के।
अवस सब यह रोज़ा नमाज़ो वज़ है।
बरसता रहे अब रहमत तुम्हारा।
यही "अब्र" की एक ही आरज़ू है।

किया इश्क ज़ुल्फ़े दुतां चाहता है।
बला क्यों यह सर पै लिया चाहता है॥
हुआ दिल यह तुझ पर फ़िदा चाहता है॥
सरासर खता बस किया चाहता है॥