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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/४९९

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सिर मोर मुकुट सोहै कटि पीत पट बिराजै।
गुञ्जावतंस हिय में बनमाल भा रहा है॥
कैसे करूं सखी अब कल से नहीं कल आती।
मन मोह कर वो मोहन मुझको भुला रहा है॥११॥

रेखता


हमने तुमको कैसा जाना, तुमने हमको ऐसा माना॥टेक॥
सैरों को गैरों संग जाना, पास मेरे हरगिज़ नहिं आना,
देख दूर ही से कतराना; ए तोतेचश्मी जतलाना॥
जहरीले नख़रें बतलाना, सौ सौ फिकरे लाख बहाना,
दमबाज़ी ही में टरकाना, गरज़ हमै हर तरह सताना॥
रोज़ नई सज धज दिखलाना, चपल चखन चित चितै चुराना,
भौंह कमान तान सतराना, लचक निज़ाकत से बल खाना॥
श्रीबदरी नारायन मत जाना, सीखा दिल का खूब जलाना,
पास मुहब्बत जरा न लाना, पहिने बेरहमी का बाना॥१२॥

ए दिलवर दिल कर दीवाना। अब कैसा घाई बतलाना॥टेक॥
पहिले मन्द मन्द मुसुक्याना, अजीब भोलापन दिखलाना,
मीठी बातों में बहलाना, फन्द फिरेबों में फुसलाना।
बाकी बनक दिखाय लुभाना, प्यारी सूरत पर ललचाना,
गालों में जुल्फ़ैं छितराना, काले नागों से डसवाना॥
एक बोल पर सौ बल खाना, एक बोसे पर लाख बहाना,
भौंह कमान तान सतराना, नाक सकोड़ मुकड़ मुड़ जाना।
श्री बदरीनारायन माना, हम में ये ढंग माशूकाना,
पर इतना भी हाय सताना, ख़ौफ़े खुदा दिल में नहि ल्याना॥१३॥

लावनी


क्या सोहै सीस पर तेरे दुपट्टा धानी,
मन मेरा मस्त हो गया दिल जानी॥