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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५००

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मुख पर क्या सोहैं छुटी लटैं लटकाली,
आशिको के दिल डसने को नागिन पाली,
चमकीली चौंकाली आलशी घुँघुराली,
हैं कहीं डंक बिच्छू से जहराली,
देती हैं पेंच ये आपस में उल्झानी,
मन मेरा मस्त हो......दिलजानी॥१४॥

दोनों यह चश्म नरगिसी तेरे मतवारे,
मृग मीन खञ्ज अरविन्द लजाने हारे,
क्या सजे संग सुरमे के ये रत्नारे,
दिल दीवाना करते हैं नैन तुमारे,
चुभ जाती चितवन यह प्यारी अलसानी,
मन मेरा मस्त हो......दिलजानी॥

क्या कहूँ चाँद से मुखड़े की छबि तेरे,
पाता हूँ नहीं मिसाल जगत में हेरे,
गुल दोपहरी लखि मधुर अधर मुरझेरे,
दाने अनार दाँतों को देख गिरे रे,
खुश रंग अंग दुति दामिन देखि लजानी,
मन मेरा मस्त हो......दिलजानी॥१५॥

शोभा सब संचि विरंचि मनोहरताई,
साँचे में ढाल ये कारीगरी दिखाई,
एक अचरज की पुतली सी तुम्हैं बनाई,
चातुरी आपनी लाज लपेट छिपाई,
निरखत बद्री नारायन से सैलानी,
मन मेरा मस्त हो......दिलजानी॥