पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५०२

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की छैल बटाऊ मोहना संग रुसवाई,
फिर हरि और राधे की कथा चलाई॥

क्या कहूँ हजारों के घर हाय उजारे,
सब चतुर सयाने लोग जहाँ पर हारे॥
देखो चिराग पर जलता है परवाना,
प्यासा मरता स्वाती पर चातक दाना॥
ससि सुन्दर सूरज से चकोर क्यों माना,
मधुकर गुलाब के काँटो में उलझाना॥
नित वीन सुना कर जाते हैं मृग मारे,
सब चतुर सयाने लोग जहाँ पर हारे॥
कुछ और सबब इस्में न हमें नज्रा या,
दिलही को दिलके साथ वास्ता पाया।
गुनरूप सबब नाहक लोगों ने गाया,
यह है कुछ उस परवरदिगार की माया।
जुल्फों के फन्दे जो निज हाथ संवारे,
सब चतुर सयाने लोग जहाँ पर हारे।
बस वही बना माशूक सितम करता है,
जिस पर आशिक दीवाना बन मरता है।
कोई लाख कहो वह नहीं ध्यान धरता है,
राहत वरंजये की पर मरता है।
बदरीनारायन सच्चे ख्याल तुमारे,
सब चतुर सयाने लोग जहाँ पर हारे*[१]॥१७॥


  1. *कुछ पसन्द आया कि नहीं! सच कहना, बस! ठीक यही हाल इश्क का है। (भारतेन्दु प्रतिलिखित)