पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५१३

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द्वितीय भेद


मिलती लय


प्यारी! लागत तिहारी छबि, प्यारी प्यारी ना।
गोरे गालन पैं लोटत लट, कारी कारी ना॥
मुस्कुरानि मन हरै मोहनी, डारी डारी ना।
मनहुँ प्रेमघन बरसै तोपैं, वारी वारी ना॥२७॥

तृतीय भेद


ऋतु आई बरखा की नियराई कजरी॥
सब सखियाँ सहेलिन मचाई कजरी।
लगीं चारो ओर सरस सुनाई कजरी॥
नभ नवल घटा की छबि छाई कजरी।
पिया प्रेमघन! आवो मिल गाई कजरी॥२८॥

चतुर्थ भेद


ठाह की लय में


सैयां सौतिन के घर छाए, सूनी सेजिया न सोहाय॥
गरजै बरसै रे बदरवा, मोरा जियरा डरपाय।
बोलै पापी रे पपीहा, पीया! पीया! रट लाय॥
बरजे माने ना जोबनवाँ, दीनी अंगिया दरकाय।
पिया प्रेमघन बेगि बुलावो अब दुख नाहीं सहि जाय॥२९॥

पञ्चम भेद


अथवा नवीन संशोधन


गुय्यां देखो री कन्हैया रोकै मोरी डगरी॥टेक॥
ओढ़े कारी कमरी, सिर पर टेढ़ी पगरी,
गारी बंसी बीच बजावै देखौ ऐसो रगरी॥
भाजै मारि मारि कँकरी, रोजै फोरै गगरी,
यह अन्धेर मचाये घूमै सारी गोकुल की नगरी॥