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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५१६

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सोही हरियारी छिति छाय। बिच बिच बीरबधू बिखराय॥
मोरवा नाचै हिय हरखाय। पपिहा पिया २ चिल्लाय॥
कर पग मेहदी रग रँगाय। सूही सारी पहिरि सुहाय॥
सखियाँ झूलै कजरी गाय। मै घर बैठि रही बिलखाय॥
झिल्लीगन झनकार सुनाय। दादुर बोलै सोर मचाय॥
पिया प्रेमघन ल्यावो हाय। अब दुख नाही सहि जाय॥३६॥

चतुर्थ विभेद

दून

विकृत लय और छन्द

ललना


छेडो छेडो न कन्हाई मै पराई ललना॥
नोखे छैल भए तुमही, फिरो घूमत बनि दुखदाई ललना॥
इन चालन लालन अनेक, बस करि कलक कुल लाई ललना।
पिया प्रेमघन माधव तुम, हठि करत हाय ठगहाई ललना॥३७॥

दूसरी


तोरी साँवरी सूरत लागै प्यारी जनिया॥
तोरी सब सज धज अति न्यारी जनिया॥
मतवारी अँखियन की चितवन सो जनु हनत कटारी ज॰॥
मंद मंद मुसुकाय मोहनी मंत्र मनहुँ पढ़ि डारी जनिया॥
मीठी बतियन मोहत मन सब सुध बुधि हरत हमारी ज॰॥
मनहुँ प्रेमघन बरसत रस छबि भूलत नाहि तिहारी ज॰॥३८॥

झूलन
नवीन संशोधन
झूलै नवल लला संग नवेली ललना।
ताक झाँक औ झुकनि मै छुटत छल ना॥