पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५२१

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प्रेमघन पिया, लगि सौतिन के हिया, तरसाये मोर जिया, बात
नटि नटिकै रे सांवलिया॥५५॥

दूसरी


कहि नहिं जाय कर मीजि पछताय, रही मन समझाय, तैं सताये
दम दै दै रे सांवलिया॥
देखि धाय धाय, बरबस पास आय, झूठी बातन बनाय, बिलमाये
कर धै धै रे सांवलिया॥
ऐंठि इतराय, मन्द मन्द मुसुकाय, बांके नैनवाँ नचाय के, चोराये
चित लै लै रे सांवलिया॥
प्रेमघन हाय! कबहूं न गर लाय, मिले मन हरखाय, तैं छली छल
कै कै रे सांवलिया॥५६॥

उर्दू भाषा


दिल तुझपर है आया जान! फिरा करता हूँ मैं हैरान,
हज़ारों लिए हुए अरमान, बता मिलने का कोई ज़रिया।
आऊँ मैं किस तर्ह किधर से, मुश्किल महज़ गुज़रना दर से,
है अफ़सोस तेरे भी घर से, नहीं हिलने का कोई ज़रिया।
बाहर "अब्र" प्रेमघन हद, के पहुँचा हिज्र क़िस्मते बद के,
बाइस, नहीं गुले मक़सद के मेरे खिलने का कोई ज़रिया॥५७॥

दूसरी


तेरे फ़िराक़ में हैरानी, हमको जैसी पड़ी उठानी,
सुन तो उस्की ज़रा कहानी, करम कर अब ऐ दिलवर जानी।
रूए रौशन का दीदार, दिखलाने में भी इन्कार,
करता है क्यों तू हर बार, बता तो सबब ऐ दिलबर जानी।
हुस्ने दिल-फ़रेब यः जान, है थोड़े दिन का मिहमान,
ढलने पर शबाब के शान, रहेगी कब ऐ दिलबर जानी।