पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५२२

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घिरकर "अब" प्रेमघन! छाये, सैरे गुलशन के दिन आये,
तूभी साथ अगर मिल जाये, मजा हो तब ऐ दिलबर जानी॥५८॥

द्वितीय भेद
न्यूनता


तोसे तो डर लागै रे बेइमनवा॥
नैन लडाय लुभाय, फेरि सुधि त्यागै र बेइमनवाँ॥
मन्द मन्द मुसुकाय, दूर लखि भागै रे बेइमनवाँ॥
झूठी मिलन आस दै, रैन दिना दिल दागै रे बेइमनवाँ॥
रसिक प्रेमघन रोजै जाय, सौति सग जागै रे बेइमनवाँ॥५९॥

तृतीय विभेद
विशेष विकृत वा सर्वथा स्वतन्त्र लय
रामा हरी
सामान्य लय

जुरी जमात गूजरी जमुना कूल कदम कुञ्जन मै रामा।
हरि २ हिलि मिलि खेलै कजरी राधा रानी रे हरी॥
कोउ मृदग, मुँहँचग, चग, लै सारंगी सुर छेडै रामा।
हरि २ कोउ सितार, करतार, तमूरा आनी रे हरी॥
कोउ जोडी टनकारै, कोऊ घुँघरू पग झनकारै रामा।
हरि २ नाचै कितनी माती जोम जबानी रे हरी॥
छायो सरस सनाको सुर को, गावै मोद मचावै रामा।
हरि २ गीतै कजली की कल कोकिल बानी रे हरी॥
हसत लक ललकावै, नाक सकोरै, ग्रीवँ हलावै रामा।
हरि २ नैन बान मारै जुग भौहै तानी रे हरी॥
कहर भाव बतलावै, सुरपुर की सुन्दरनि लजावै रामा।
हरि २ मोहि लियो मन स्याम सुँदर दिल जानी रे हरी॥