पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५३२

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गृहस्थिनों की लय
स्थानिक ठेठ स्त्री भाषा


तोहिं पर संवरा लुभान सांवरि गोरिया॥
सँवरी सूरत, रस भरी अँखियां, लखि बिन मोलवें बिचान सा॰
तोरे देखन काज आज कल, घूमै सँझवौ बिहान सां॰ गो॰
एकहु पल नहिं कल अब ओके जब से नैन उरझान सां॰
मिलि रस बरसु प्रेमघन पिय पर दैकै जोबनवाँ कै दान सां॰

दूसरी


जिनि करः जाए के विचार बनिजरऊ!
रिमिझिमि २ दैव बरीसै, बढ़ि आए नदिया औ नार बनि॰
और महीना बनह वैपारी, सावन गटई कै हार बनिज॰
काउ नफा फेरि आइ भँजैब्यः, बढ़ि गएँ जोबना के बाजार? ब॰
बरसः रस मिलि पिया प्रेमघन मानः कहनवाँ हमार ब॰

तीसरी


भैय्या न आयल तोहार छोटी ननदी॥
बरसत सावन तरसत बीता, कजरी कै आइलि बहार छो॰
सब सखी झूला झूलैं गावें, सावन, कजरी, मलार छो॰
पी २ रटत पपीहा, नाँचत मोर किए किलकार छो॰ न॰
पिया प्रेमघन बिन एकौ छन, नाहीं लागै जियरा हमार छो॰

रंडियों की लय


अजहुँ न आयल हमार परदेसिया!
बन २ मोरवा बोलन लागे, पापी पपिहरा पुकार पर॰
घर घर झूला झूलत कामिनि, करि सोरहौ सिंगार परदे॰
सावन बीते कजरी आई, मिलि न खबरिया तोहार परदे॰
छाये कहां प्रेमघन तुम, करि झूठे कौल करार पर॰॥८९॥