पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५३७

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द्वितीय भेद
दून
बुँदेलवा


मिलल बलम बेइमान रे बँदेलवा॥टे॥
हमसे प्रीत रीति नहिं राखै, औरन संग उरझान रे बँदेलवा॥
रतियां जागि भागि उठि भोरहि, आवइ घर खिसियान रे बुँ॰॥
पिया प्रेमघन की चालन सों, मैं तो भई हैरान रे बुँदे॰॥१०१॥

दूसरी


उमड़े जोबनवन पर परि बुँदवा होइ जायँ चखनाचूर रे बुं॰।
तन दुति देखि लजाय दमिनियाँ दौरै दूरै दूर रे बुँदेलवा॥
पिया प्रेमघन अलकन लखि घन कहरत छोड़ि गरूर रे बुँ॥१०२॥

तृतीय भेद
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अद्धा


पाये भल बा ये रँग लाल रे करँवदा।
नहिं ओस जेस दूओ गाल रे करँवदा॥
ओठ लखि बिकल प्रबाल रे करँवदा।
कुनरू गिरल खसि हार रे करँवदा॥
देखि २ नैनन के हाल रे करँवदा।
कंवल बुड़ल बिच ताल रे करँवदा॥
लखि अँटखेलिन की चाल रे करँवदा।
लजि २ भजलैं मराल रे करँवदा॥
निरखत भुजन बिसाल रे करँवदा।
कीच बीच घुसल मृनाल रे करँवदा॥