पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५३९

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संयोगिनी नारि नीरज नैनों में अञ्जन सार सार।
मेहँदी के रंग रंगकर कर पद, पट करौंदिया धार धार॥
विशद विभूषण से भूषित झूलती हैं झूले द्वार द्वार।
गाती हैं कजली मलार, मिल २ कर दो दो चार चार॥
सरस भाव भीनी चितवन से देखैं घूँघट टार टार।
मन्द २ मुसुकातीं मानो मूठ मोहनी मार मार॥
पिय से मिलीं मदन मदमाती देतीं सी हिय हार हार।
वियोगिनी बनितायें बिलख रही हैं आँसू ढार ढार॥
सुनकर जाने की बातैं जी जलता है हो छार छार।
जावो कहीं न पिया प्रेमघन जाऊँ तुम पर वार वार॥१०५॥

उर्दू भाषा


बने ठने यों कहां से आते हो मेरे दिल्दार यार।
रुखे मुनव्वर पर बिखरे हैं गेसूये खमदार यार॥
गञ्जि हुस्न पर याकि निगहवाँ हैं यह काले मार यार।
चश्मि मस्त में बादै गुलगूँ का है भरा खुमार यार॥
तेगे निगाहे नाज से करते फिरते हैं यह वार यार।
दस्तो पाय हिनाई पोशिश रंगे गुले अनार यार।
लबे लाल भी रंगे पान से दिखलाते हैं बहार यार।
अब मत मेरा दिल तरसाओ सुनो मेरे अैय्यार यार॥
अब्र करम बरसो मुझ पर दे दो बोसे दो चार यार॥१०६॥

पञ्चम विभेद
ढुनमुनियाँ में गाने की कजली
मोरे हरी के लाल


जमुना के तीर भीर भई आज भारी—जसुदा के लाल।
झूले झूला मिलि गोपी ग्वाल—जसुदा के लाल॥