पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५४०

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गावैं सब सखी मिलि कजरी रसीली–जसुदा के लाल।
बांसुरी बजावै दै २ ताल–जसुदा के लाल॥
डरन डेराय प्यारी आय गर लागै–जसुदा के लाल।
होयं तब निपट निहाल–जसुदा के लाल॥
लपटाय मोतिन के हार हरखाने–जसुदा के लाल।
सटि मुरझावैं वनमाल–जसुदा के लाल॥
कौनौ सखिया कै उड़ी ओढ़नी ओढ़ावैं–जसुदा के लाल
चञ्चलहु अञ्चल संभाल–जसुदा के लाल।
झूलत केहूकै नथ बेसर बचावैं–जसुदा के लाल।
केहूकै सुधारैं बेंदी भाल–जसुदा के लाल॥
छतियां लगाय हर केहूकै छोड़ावैं-जसुदा के लाल।
केहू के खिझावैं चूमि गाल–जसुदा के लाल॥
मीठी २ बात कैं मनावैं फुसिलावै–जसुदा के लाल।
कौनो के गरे में भुज डाल–जसुदा के लाल॥
इहि भांति प्रेमघन रस बरसावैं–जसुदा के लाल।
रचि छल छन्दन के जाल–जसुदा के लाल॥१०७॥

षष्ठ विभेद
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अद्धा


सुनः! २ मदन गोपाल जसुदा के लाल।
सीख्यः ई तूं कवन कुचाल जसुदा के लाल॥
लखि बन सघन बिसाल जसुदा के लाल।
लुकः चढ़ि कदम की डाल जसुदा के लाल॥
देखतहि बारी बृजबाल जसुदा के लाल।
धावः होइ अतिही उताल जसुदा के लाल॥