पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५४४

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बेगि प्रेमधन रस बरसाय कै,
मिलु पिय हिय हरखाय कै; रे सांवलिया॥११५॥

दूसरी


जावे कहँ लगन लगाय कै; रे सांवलिया।
कुञ्जन में आय कै, बँसुरिया बजाय कै,
सखियन सबन बुलाय कै; रे सांवलिया।
भावन दिखाय कै, रसीली गीत गाय कै,
चितवत चितहिं चुराय कै; रे सांवलिया॥
रासहि रचाय के, अंग परसाय कै,
सब सुधि बुधि बिसराय कै; रे सांवलिया।
पिया प्रेमघन गरवाँ लगाय के,
सब रस लिहे मन भाय कै; रे सांवलिया॥११६॥

द्वितीय विभेद
डेवढ़


सुनि सुनि सैय्यां तोरी बतियां,
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना!
सावन मास चलन कित चाहत, करि छल बल की घतियां;
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना!!
नहिं बीतत बालम बिन बरखा, की अँधियारी रतियां;
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना!!
पिया प्रेमघन घन घिरि आये, सूतो लगकर छतियां;
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना!!॥११७॥