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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५४५

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—५२१—

दूसरी


बोलन लगे हैं बन मोरवा,
सोरवा मचाय हाय! सोरवा मचाय हाय! ना॥टे॰॥
सूनी सेज अँधेरी रतियाँ, जगत होत नित भोरवा;
मोहिं न सुहाय हाय! मोहिं न सुहाय हाय ना!!
पिया प्रेमघन तुम कहाँ छाये, भूलि सूरति चित चोरवा;
मिलु अब आय हाय! मिलु अब आय हाय ना!!॥११८॥

झूले की


धीरे धीरे झुलाओ बिहारी,
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना!!॥टे॰॥
छतियां मोरी धर धर धरकत, दे मत झोका भारी;
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना!!
लचत लंक नहिं संक तुमै कछु, हो बस निपट अनारी;
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना!!
दया वारि बरसाय प्रेमघन, रोक हिंडोर मुरारी;
जियरा हमार डरै! जियरा हमार डरै ना!!॥११९॥

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स्थानिक ठेठ ग्राम स्त्री भाषा


मानः कि न मानः हम तौ जाबै नैहरवाँ,
कजरी के दिन नगिचान बा;
जिया ललचान बा न।
छोड़ि ससुरारि आइलि बाटीं सब सखियाँ,
छोटका बहनोयौ मेहमान बा;
मिलल मिलान बा न।
भेजली संदेसा मोरी बड़ी भउजैया,
आवः भल सावन सुहान बा;
जुटल समान बा न।