पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५५७

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प्रेमघन अकुलाय, रस बिना बिलखाय,
कहै खिल्ली सी उड़ाय, मोरे बारे बलँमू॥१३८॥

दूसरी
अनमेल विवाह


नैहर में देबै बिताय बरु बिरथा बैस जवानी रामा!
हरि! २ का करबै लै ई छोटा साजनवां रे हरी!!!
पापी पण्डित पामर पाधा गैलैं तिलक चढ़ावै रामा!
हरि! २ बनरा से बनरा के दिहेनि बयनवां रें हरी!
नहिं कुल, रूप, नहीं गुन, विद्या, बुद्धि, सुभाव रसीला रामा!
हरि! २ नहीं सजीला देखन जोग जवनवां रे हरी!
आय बरात दुआरे लागी आली! चढ़ी अटारी रामा!
हरि! २ देखि दूलहा सूखल मोरा परनवां रे हरी!
गावन लागीं बैरिन बुढ़िया लोग ब्याह की गीते रामा!
हरि! २ बाजन लागे हाय! ब्याह बाजनवां रे हरी!
सुनत प्रान अधरन सों लागे व्याकुलता अति बाढ़ी रामा!
हरि! २ भसम होत हिय भावै नहीं भावनवां रे हरी!
गोदी चढ़े दूध से पीयत दूलह ब्याहन आए रामा!
हरि! २ लै बैठाये माड़व बीच अगनवां रे हरी!
बरबस पकरि नारि घिसियावैं पैर परै नहिं आगे रामा!
हरि! २ नाहीं मानै हमरा कोऊ कहनवाँ रे हरी!
बूढ़े बेईमान बाप जी पूजन पांव लगे हैं रामा!
हरि! २ मानो उनके फूटे दोऊ नयनवां रे हरी!
पकरि हाथ संकल्पत बेचारी बेटी बेदरदी रामा!
हरि! २ कैसे बची! करी अब कवन बहनवां रे हरी!
नहिं उर दया, धर्म्म नहिं, लज्जा लोक लेस मन ल्यावै रामा!
हरि! २ बोरत बा ई जनम मोर दुसमनवाँ रे हरी!