रंगत बनी अजब चेहरे की ज्यों गेंदे का फूल॥
रोम अनेक दबाये बाढ़ी साँस, साक औ सूल
बकरी सी सूरत बन, आंखैं भईं लाल ज्यों तूल।
जौ नहिं पावत, तौ मुहँ बावत उठत करेजवा हूल
पैसे की तंगी से जीना झूसन हुआ फजूल॥
मैली बदन सुरत जिन्नाती फिरत छानते धूल
चण्डू बाज धनी दानी कहँ मिलै यार अनुकूल॥१३७॥
कुरीति
बाल्य विवाह
स्थानिक ग्राम्य स्त्री भाषा
भौंरा चकई बहाय, गुल्ली डण्डा बिसराय,
तनी नाचः इतराय, मोरे बारे बलँमू।
करिहैंयवां हिलाय, औं भँउहँ मटकाय,
ताली दै कै चमकाय, मोरे बारे बलँमू।
खींड़ी दँतुली दिखाय, तनी तनी तुतराय,
गाय सोहर सुनाय, मोरे बारे बलँमू।
आवः यहर नगिचाय, घँघरी देई पहिराय,
सुन्दर ओढ़नी ओढ़ाय, मोरे बारे बलँमू।
नैना काजर सुहाय, देई सेंदुर पहिराय,
माथे टिकुली लगाय, मोरे बारे बलँमू।
नई दुलही बनाय, गोदी तोहके उठाय,
मुहँ चूमब खेलाय, मोरे बारे बलँमू।
पावै पावौं न उठाय छाती, बाल पिय पाय,
गोरी कहतौ सरमाय,—मोरे बारे बलँमू।