पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५७०

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चलत सुगन्ध सनी पुरवाई, दुखदाई तन परसै—
श्रीबद्रीनारायन जू पिय बिन आली जिय तरसै॥

मे


बन में मोरवा कहरान लगे, सुनि धुनि धुरवा नियरान लगे॥टेक॥
चहुँ ओर चपल चपला चमकत, द्विति इन्द्र धनुष निशि २ दमकत;
पुरवाई पवन सरस रमकत, लखि बिरही जन बिरहान लगे॥
श्री बदरी नारायन कविवर, तिय झूल रहीं झूला घर घर;
फूलन बगिया सोंही सजकर, चित चंचरीक ललचान लगे॥

बरसाती ठुमरी


दसहूँ दिशि दुति दमकत दामिन, जीगन जुत जगमगात जामि॥टे॰॥
बद्री नारायन जू पिय बिन, गरजत घन रहत सदा निशि दिन;
पिक चातक मोर सोर छिन छिन, व्याकुल कीनो बिरही कामिन॥

मलार की ठुमरी
इत आओ यार सैलानी, घेरि घटा घन बरसत पानी॥टेक॥
आय धाय गर लागो प्यारे—करो केलि मनमानी॥
बद्रीनाथ पागरी धानी जैहैं भीग दिलजानी॥
कोइलिया छिन छिन कूकि कूकि दई मारी, अरी जियरा डर पावै॥टेक॥
सूनी सेज रैन अँधियारी—रहि रहि जिय घबरावै।
श्री बदरी नारायन जू पिय बिन निस दिन नींद न आवै॥

खेमटा


कहूँ जनि जावो—हो—दिलजानी॥टेक॥
करत सोर चहुँ ओर मोर गन, बन बन बरसत पानी।
बद्रीनाथ बिलोकत काहे न जोबन जोर जवानी।