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पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५६९

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—५४६—

धार धरे धुरबा धावत चढ़ी चंचलता चपला पैं॥
कोऊ जात हाय बिनवै बलि बद्रीनाथ लला पैं।

मेघ मलार


अब तो आओ प्रिय प्यारे, कारे कारे घन घूमि घूमि छिति चूमि चूमि दमकत दामिन॥टेक॥
झोंकत रहत पवन पुरवाई—कूकत कोकिल कूर कसाई,
कुञ्जन मोर सोर दुख दाई—बिकल करत विरही कामिन॥
बद्रीनारायन जू तुझ बिन, नहि लगत पलक सपनेहु पल छिन,
सूनी सेजिया दुख देत कठिन, मानहु कारी ब्याली जामिन॥

चपला चमकै चमकाली—आली बनमाली बिन—
काली निशि मैं कूकत कोकिल कलाप॥टेक॥
बद्रीनारायन जू नीरद, बरसत उमड़े आवत सब नद,
नाचत मयूर गन मतिमद, जिय डरपावत करि अलाप॥

आयो पावस अब आली—बनमाली पिय बिन ब्याली सी
डँस जाय हाय यह कारी रैन॥टेक॥
नव नीरद उनये जनु आवत, बिरहिन पर साजे मैन सैन,
छन छन छन छबि छहराति मनहु कर लसति कलित करबाल मैन॥
झिल्ली दादुर मोर सोर चहुँ ओरन सों दुख दैन जैन,
बद्रीनारायन जू पिय बिन, निसि बासर बरसत रहत नैन॥

घन उमड़ि घुमड़ि नभ धावत॥टेक॥
काली रैन डराली लागत चपला चख चमकावत।
ता बिच बोलि पपीहा पी पी करि छतियाँ दरकावत॥
चोपनि चाव भरे चहुँ ओरनि मोरन सोच मचावत।
बद्रीनाथ रसिकबर ता छन राग मलारहि गावत॥

चपलारी—चहुँ दिसि चमकि चमकि छिति चूमै,
जलद घन बूनन बरसै॥टेक॥