पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५७३

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कलित कलाप कोकिलान की कलोल किलकारत
करीलन कदम्बन के कुञ्ज कुञ्ज—कीर कुल भरि
भारी; अधिक अथोर मोर सोर चहु ओर पिक,
चातक चकोर के समान की अवाज आज
बद्रीनाथ हाथौं हाथ लेत मन मांगि छबि दृगन टरत टारी॥

झूलैं हो हिंडोरे सावन मास सजीले, सरस सरयू के कूलैं॥टेक॥
सीय सीय-वल्लभ रति रति-पति की उपमा नहि तूलै झूलै हो॥
लली लंक लचकीली लचकन मचकत पाटन हूलै-झूलै हो॥
श्री बद्रीनारायन जू मन यह छबि कबहुँ न भूलैं झूलैं हो॥

झूलत श्यामा श्याम आली, कालिन्दी के कल कुंजनि मैं॥टेक॥
नवल लली राजत छबि छाजत, नवल अली गन संग
गावत नवल राग अभिराम आली॥
लटकन लट काली घुघराली, शरद चन्द पर जनु जुग ब्याली
सुखमा ललित ललाम आली॥
ऐसी अमल अनूप छटा पर—श्री बद्रीनारायन कविवर
वारत छबि सत काम आली॥

खेमटा


घुमड़ि घन घेरन लागे आली॥टेक॥
चहुँ ओरन चौंधी दै दै चख, चमक रही चपला चमकाली॥
गरजनि घोर सोर की धुनि बिरही तन तावन वाली,
श्री बद्री नारायन जू पिय जनु सुधि भूलि रहे बनमाली॥

चितै जनु चातक लौं चित चोरैं॥टेक॥
नील कंज दुति हारी गिरि कज्जल अवली घन घोरैं॥
मनहु मत्त मातङ्ग मैन के धीरज के तरु तोरें॥
मन्द मन्द अरु मधुर मधुर धुनि, करत हरत मन मोरें॥
वाह! वाह! देखो तो बदरी नारायन या ओरैं।