पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५७४

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बिमल बन बागन मैं, बर्षा की आई बहार॥टेक॥
गुलवास, गुलशव्वो सजकर फूले हार सिंगार।
छबि मालती मल्लिका लखि मन मधुकर दीनो वार॥

विरही जन वध काज खिलीं कर केतक लिये कटार।
कल कदम्ब के कुसुम गेंद हैं मनहु मनोहर भार॥

गुलमेहदी गुल दोपहरी रंग बदल बने दिलदार।
हरियारी चहु ओरन छाई डोलत सुखद बयार॥

चातक मोर चकोर कोकिला बोलत डारहि डार।
श्री बद्री नारायन जू पिय चलि लखिये इक बार॥
 
तनक धर धीर दई के निहोरे॥टेक॥
मनहुँ अनोखे आली झूलति तूही आज हिंडोरे॥
नाही नाही, कहि कहि, हा, हा, खाती हाथनि जोरे॥
बालकमानी सी नाचाप कर लंक लेति चित चोरे॥
भौंहैं तानि करत सीसी सतराती नाक सिकोरे॥
चंचल चंचल ह्वै उघरत जोवन उभरे से थोरे॥
सखि संभाल, डरिपै जनि वारी रहियै लाज बटोरे॥
घन गरजनि सो ह्वै ब्याकुल लहि हूल हिंडोर हिलोरे॥
श्री बदरी नारायन पिय हिय लागत भरि भुज गोरे॥

श्याम हिंडोरवा झूलै री गुइयां कालिन्दी के तीर॥
मोर मुकुट वनमाल विराजै कटि तट सोहत चीर॥
लचत लंक लचकीली लचकत प्यारी होत अधीर॥
ललित केचुकी दीसत फहरत अंचल लगत समीर।
बद्रीनाथ दोऊ मिलि बिहरत राधा श्री बलवीर॥

सावन सूही सारी सजि सखी सब झूलै हिंडोर॥
कोयल कूकत कुंजनि, मोर मचावत सोर॥

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