पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५८१

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गौरी।


धन्य! २ प्रभु देव दिवाकर।
धन्य! असख्य लोक अधिनायक॥
ग्रह उपग्रह नछत्र सकल तोहि
करत प्रदछ्‌छिन मानि सहायक।
तिन अधिवासी जीवन हित जीवन
जल अन्न प्रकास प्रदायक॥
निज भक्तन के भव भय भञ्जक
योग छेम मुख साज विधायक॥
प्रेम सहित गुनि यहै प्रेमघन
भयो नाथ तेरो गुन गायक॥

राग इमन
जय जय भारती भवानी।
सुमिरत मगल सकल सवारत विद्या सुभ सुखदानी॥
बिसद सहस सारद ससि सोभा धारनि वेद बखानी॥
सेत बसन भूषन तन राजत पुस्तक वीना पानी॥
करि अब कृपा प्रेमघन के हिय बसहु सदा महरानी॥

भैरव


मेरे मन माधव मुकुन्द भजि मोहन मदन मुरारी॥
सुमुखि सिरोमनि राधा रानी सोहत संग सुकुमारी॥
अतसी कुसुम सरिस सोभा तन जग मन मोहन बारी॥
निन्दत चन्द अमन्द बदन दुति केसर खौर सुधारी॥
गोल कपोल लोल अलकावलि लहरत घूँघट बारी॥
मानहुँ अमल कमल पर विहरत अवलि अलिन की कारी॥
उर वनमाल रसाल भाल पर केसर खौर सुधारी॥
मोर मुकुट मकराकृत कुन्डल की छवि छाई न्यारी॥