पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५८७

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कान्हैया ने डगरिया छेकी नागरिया मेरी,
हटको मानत नहिं नेकु लंगर॥टेक॥
बद्री नारायन जू नटखट फेकी काँकरिया
कुचाली फोरी गागरिया मोरी॥

कबहूं अैयो दिलदार गलिन, दरसन बिन तरसत रहत नैन॥टेक॥
श्री बद्री नारायन तुम बिन, चित चैन है न प्यारे पल छिन,
दिन रैन मैन मान मलिन॥

अँखियन वह बनक समाय गई,
सखि काह कहूं कछु कहि न जाय॥टेक॥
दिखलावत सुभ सांवरी सूरत, मन मैं मनसिज उपजाय गयो॥
श्री बद्री नारायन दिलवर चितवत चट चितहिं चुराय गयो।

जेहि लखि सखि भाजत लाज मार,
सजनी वह छबि दरसाय गयो॥टेक॥
चोखे चखनि चितै वह बीर, सुतीर सरिस दृग होत पार॥
बद्रीनाथ यार यदि मिलिना, तन मन वारूँ सौ सौ वार॥

सब साज बाज बृजराज आज मेरे मन बस गई रे॥टेक॥
सीस मुकुट कर लकुट बिराजै कटि तट पर पीताम्बर छाजै,
लट घूँघर वाली ब्याली, आली जिय डस गई रे॥
बद्री नाथ सांवरी सूरत मानहु मदन मोहनी मूरत,
मतवारी प्यारी पलकन की चितवन मन में धँस गई रे॥

दुखियाँ अखियाँ रोवत तुझ बिन, टुक दरस दिखा जाओ॥टेक॥
बद्रीनाथ यार तेरे बिन, सपनहु लगत न पल एकौ छिन,
यार कभी भूले से तो इन गलियन आ जावे॥