पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 1.djvu/५८८

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शहाने की ठुमरी


ठगि गये आज ब्रजराज सो नयनवाँ॥टेक॥
बिक बिन दाम गये, ध्यान ही को काम लये,
बिबस भये सुनि सरस नयनवाँ॥
बद्री नाथ बीर हाय, बेदना कही न जाय,
चित चुभि गयो जुग दृग के सयनवाँ॥

ठुमरी सिंदूरा


ये चित चोर चातुरी तेरी आज परी पहचान॥टेक॥
मृदु मुसुक्याय लुभाय हाय मन मारत नैन बान॥
बद्रीनाथ छयल छलबलिया तोह गई हम जान॥

न लगो सैयां धाय धाय छतियां—
चलो हटो जानी हम सिगरी घतियां॥टेक॥
बद्रीनाथ हाथ पकरो जनि, मोहे न भावै ऐसी प्रीत तुमारी
जावो जावो जहां रहे रतियां॥
दिखला मुखड़ा टुक चंद सरिस, तन मन धन तुझ पर वारियाँ॥टेक॥
बद्री नाथ चितै चित चोरयो चंचल चख मत मारियां॥

ठुमरी सै लंग


रूसो जात आली री गुँया रे—बांको दिलवर यार॥टेक॥
बद्री नाथ पिया जो मनावै रे—देहौं कान की बाली री॥

मोरी आली री—नैनवाँ लगे नहीं मानें॥टेक॥
लोक लाज कुल की मरजादा रे—ये जुलुमी नहिं मानैं॥
बद्री नाथ हाथ परि औरन के न हमैं पहिचानैं॥

ना जानूँ केहि कारनवां (गुयां रे) सजनां रूसो जाय॥टेक॥
जिय धरकत हिय थर थर कांपत पिय बिन कछु न सुहाय॥
बद्री नाथ जाय बरजोरी—लावो सखी समुझाय॥